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हरेली तिहार 2025: छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार और इसकी सांस्कृतिक पहचान

छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में “हरेली तिहार” (Hareli Tihar 2025) का विशेष महत्व है। यह त्योहार न केवल राज्य का पहला पर्व माना जाता है बल्कि कृषि, पर्यावरण और लोक परंपराओं से जुड़ा एक सांस्कृतिक उत्सव भी है।

हरेली तिहार 2025 इस साल 24 जुलाई को आषाढ़ अमावस्या के दिन मनाया जाएगा। यह त्योहार किसानों, ग्रामीण समाज और बच्चों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। इस लेख में हम जानेंगे कि हरेली क्या है, क्यों मनाया जाता है, इसकी परंपराएं क्या हैं और 2025 में यह पर्व कैसे मनाया जाएगा।

🌾 हरेली का अर्थ और महत्व (What is Hareli Tihar?)

“हरेली” शब्द छत्तीसगढ़ी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “हरियाली”। यह त्यौहार हरियाली के स्वागत का प्रतीक है। किसान इस दिन कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं, पशुधन का सम्मान करते हैं और खेती-किसानी के आरंभ की तैयारी करते हैं।

यह पर्व विशेष रूप से किसानों और ग्रामीण जनों के लिए एक नई शुरुआत का संकेत होता है। मानसून की पहली बारिश के बाद जब खेतों में हरियाली छा जाती है, तब यह पर्व मनाया जाता है।

🗓️ हरेली तिहार 2025 की तिथि और दिन (Hareli Tihar 2025 Date & Day)

  • दिनांक: 24 जुलाई 2025 (गुरुवार)
  • तिथि: आषाढ़ माह की अमावस्या
  • स्थान: सम्पूर्ण छत्तीसगढ़, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र

यह दिन शुभ माना जाता है और इसी दिन लोग कृषि यंत्रों और बैलों की पूजा कर खेती कार्यों की शुरुआत करते हैं।

🐂 क्यों मनाया जाता है हरेली तिहार? (Why is Hareli Celebrated?)

हरेली का त्योहार मुख्यतः कृषि और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। नीचे हरेली मनाने के मुख्य कारण दिए गए हैं:

  1. 🌱 कृषि यंत्रों की पूजा – किसान अपने हल, गैंती, कुदाल, फावड़ा आदि उपकरणों की सफाई कर उन्हें पूजा करते हैं।
  2. 🐃 बैलों और पशुओं की सेवा – इस दिन बैलों को नहलाया जाता है, उन पर चंदन और हल्दी लगाई जाती है और उन्हें अच्छे भोजन (गुड़, चना, चूरी आदि) से तृप्त किया जाता है।
  3. 🍃 नीम और तुलसी जैसे औषधीय पौधों की पूजा – इन पौधों को स्वच्छता और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
  4. 🧹 बीमारियों से सुरक्षा – मान्यता है कि इस दिन नीम की झाड़ू से घर की सफाई करने से बुरी आत्माएं और बीमारियां दूर होती हैं।
  5. 👨‍👩‍👧‍👦 सामाजिक एकता – गांवों में सामूहिक भोज, खेल और गीत-संगीत का आयोजन होता है, जिससे सामाजिक भाईचारा बढ़ता है।

🎉 हरेली की प्रमुख परंपराएं (Traditional Customs of Hareli Tihar)

छत्तीसगढ़ के गांवों में हरेली को पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है। इसकी कुछ प्रमुख परंपराएं निम्न हैं:

🔸 गेंड़ी चढ़ना: बच्चे बांस की बनी गेंड़ी पर चढ़कर गांव में घूमा करते हैं। यह छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक खेल है।

🔸 झूला झूलना: पेड़ों पर झूले डालकर बच्चे और महिलाएं आनंद लेते हैं।

🔸 नीम की झाड़ू: नीम की टहनियों से बनी झाड़ू से घर की सफाई की जाती है।

🔸 लोक गीत और नृत्य: “हरेली के गीत” और पारंपरिक नाचा-गम्मत इस दिन की खास पहचान हैं।

🔸 पशु सेवा: पशुओं के सींग रंगे जाते हैं और उन्हें सजाया जाता है।

🔸 पकवान: फरा, चीला, अंगाकर रोटी, खुरमी, ठेठरी, माड़-पकौड़ी आदि बनते हैं।

🌍 हरेली तिहार का पर्यावरणीय महत्व

हरेली केवल धार्मिक या सामाजिक पर्व नहीं है बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला पर्व भी है:

  • वृक्षारोपण अभियान चलाए जाते हैं
  • जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है
  • जल संरक्षण की दिशा में जागरूकता फैलाई जाती है

इस पर्व का उद्देश्य है प्रकृति और मानव के बीच तालमेल को मजबूत करना।

🏫 स्कूलों में हरेली तिहार कैसे मनाया जाता है?

अब शहरी स्कूलों और कॉलेजों में भी हरेली तिहार को पारंपरिक रूप से मनाया जाने लगा है:

  • विद्यार्थी गेंड़ी चढ़ने की प्रतियोगिता में भाग लेते हैं
  • शिक्षक वृक्षारोपण कराते हैं
  • सांस्कृतिक नृत्य, गीत और नाटक आयोजित होते हैं
  • हरेली पर निबंध प्रतियोगिता कराई जाती है

📷 सोशल मीडिया और डिजिटल हरेली

हरेली तिहार अब सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं रहा। लोग सोशल मीडिया पर:

के जरिए हरेली की परंपराओं को देश-दुनिया में शेयर करते हैं।

इससे यह लोकपर्व एक ग्लोबल पहचान की ओर अग्रसर हो रहा है।

📌 हरेली तिहार 2025 से जुड़ी मुख्य बातें (Quick Facts)

विषयविवरण
त्योहार का नामहरेली तिहार
राज्यछत्तीसगढ़
तिथि24 जुलाई 2025 (गुरुवार)
महत्वकृषि, पर्यावरण, पशुपालन से जुड़ा
परंपराएंगेंड़ी, नीम पूजा, बैल सजाना
पकवानफरा, चीला, खुरमी, अंगाकर रोटी
आधुनिक स्वरूपस्कूलों में मनाया जाना, सोशल मीडिया प्रमोशन

✨ निष्कर्ष (Conclusion)

हरेली तिहार 2025 छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा, कृषि जीवनशैली और प्रकृति से जुड़ाव को मनाने का अवसर है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हरियाली ही जीवन है, और प्रकृति से जुड़ाव में ही हमारी समृद्धि छिपी है।

आइए इस हरेली पर संकल्प लें कि हम न केवल परंपरा को निभाएं बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी अपना योगदान दें। खेत, किसानी, पशु और पेड़—यही हमारी असली धरोहर हैं।

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Gosai Das Joshi – Digital Marketing Expert, Web & Graphic Designer, and Computer Instructor. Helping businesses grow online through SEO, Ads, and custom website design.

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